जानना चाहोगे कुंडली में लग्न क्या होता है? तो ध्यान से सुनिए मेरी कहानी , मैं लग्न हूँ।
मैं लग्न हूँ पार्थ।12 भावों में से मैं प्रथम भाव हूँ। मेरे ऊपर ही तो सारी कुंडली निर्भर है। मैं हूँ तो बाकी 11 भावों का अस्तित्व है।
मुझसे से ही पता चलेगा किआप स्वभाव से गुसैल हैं, नम्र हैं, घमंडी हैं, दयालु हैं, प्रेमी हैं, हँसमुख हैं, अनुशासनप्रिय हैं भावुक हैं या धार्मिक हैं, चंचल प्रकृति के हैं या फिर गंभीर स्वभाव ओढ़े हुए हैं। आपकी दिलचस्पी किन विषयों में होगी। मैं लग्न हूँ , मैं बताऊँगा आपका कद ऊंचा है या छोटा, आप मोटे हैं या पतले । मैं ही निर्धारित करूँगा की आपका व्यक्तित्व, स्वभाव, आयु, यश, सुख और मान-सम्मान समाज में कैसा होगा। आपके चेहरे की आभा कैसी है, आपका मुखमण्डल कैसा है यह मुझसे ही तो पता चलेगा।
मैं ही तो परिवार को भोगूँगा। मैं ही तो कर्म करूँगा। मैं ही तो बच्चे पैदा करूँगा। मतलब मेरे बिना क्या मतलब कुंडली का।
मैं कमजोर हुआ तो सब किसी काम का नही। भाग्य भी मिल गया तो क्या फायदा। मैं कमजोर हुआ तो भाग्य का क्या करूँगा। क्योंकि लग्न हूँ मैं । मैं मजबूत हुआ तो अपने दम पर बाकी के 11 भावों को भी बना लूंगा।क्योंकि लग्न हूँ मैं । मेरे दम पर ही तो सम्पूर्ण फलित टिका है। 28 नक्षत्र, 12 राशियां, 12 भाव, षोडश वर्ग सब मेरे ऊपर ही तो टिके हैं। क्योंकि लग्न हूँ मैं।
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मेरी डिग्री बता देगी की इस जीवन मे मेरा उद्देश्य क्या है। मेरी डिग्री ही षोडश वर्ग तय करेगी। और तो ओर मेरी डिग्री ही 150 नाड़ी अंश तय करेगी और बता देगी की मैं कितना सूक्ष्म हो सकता हूँ। मैं लग्न हूँ। मेरी माया ही अपरंपार है।
पहले मुझे देख प्राणी , फिर बाकी चीज देख। वरना तेरा फलित धरा का धरा रह जायेगा।
मेरी लीला देख तू। मेरे आज बाजू वाले दूसरे और बारहवें भाव भी मेरी वजह से शून्य हो जाते हैं। मेरे लिए शहीद हो जाते हैं और जहा बैठते हैं वैसे फल देने लगते हैं। क्योंकि मैं लग्न हूँ। मैं हूँ तो करोड़ो श्लोक हैं। मैं हूँ तो ज्योतिष शास्त्र है।
मुझे बलवान किये बिना तेरा कल्याण नही हो सकता। क्योंकि मैं लग्न हूँ। भरोसा न हो तो किसी भी शास्त्र को देख ले। मेरा मजबूत होना जरूरी है किसी भी राजयोग के लिए।
मेरी उपस्थिति में ही सब कार्य निर्धारित होते हैं। क्योंकि मैं लग्न हूँ। मैं जब सप्तमेश से हाथ मिलाऊ तो मेरी शादी हो जाती है। पंचमेश मेरे साथ आ जाये तो बच्चे। कुल मिलाकर हर चीज का सम्बंध जब तक मेरे से न हो तो भला सिद्धि कैसे होगी पार्थ। मैं लग्न हूँ। तेरा अस्तित्व हूँ।
मेरे ऊपर जो ग्रह आये वो मेरी प्रधानता बन जाती है। मंगल आया तो पराक्रमी, लाल आंखे मेरी, खून की प्रधानता। तो मैं फिर मंगल बन के जीवन भोगता हूँ।
मैं सिंह लग्न बना तो मैं सूर्य बन जाता हूं। आत्मा प्रधान हो जाती है मेरी, हड्डियां, ह्दय, पेट मेरा प्रधान हो जाता है। मैं सूर्य बन के जीवन जीता हूँ फिर। मैं सूर्य लग्न बन जाता हूं। मैं लग्न हूँ पार्थ। मुझे समझ लिया तो कुंडली अपने आप समझ आ जायेगी।
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