रोग नाशक मन्त्र बताने से पहले मन्त्र क्या होते हैं और उनकी महिमा क्या है, यह जान लेते हैं।
” केवल शब्द मात्र या नाम मन्त्र नहीं है। इसका प्रभाव बहुत ही व्यापक होता है । मन्त्र – जप जब हमलोग करने बैठते हैं और एक बार भी मन्त्र का जप यदि हम करते हैं तो हममें उतपन्न होने वाला एक बुरा विचार कम हो जाता है। यदि दो बार करते हैं तो दो बुरे विचार कम हो जाते हैं। इस प्रकार हम जितने अधिक बार जप करते हैं उतने अधिक बुरे विचार उतने ही बार कम हो जाते हैं । मन्त्र हमारे शरीर के अंदर के कचरे को बुहार कर बाहर निकाल देते हैं । हमारे शरीर का शोधन करते हैं ।
कई लोग कहते हैं कि जब मन्त्र का जप करने बैठते हैं तो उस समय विशेषकर बुरे विचार ही आने लगते हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि आप उस मन्त्र का जप करने बैठते ही नहीं हैं । जब हम आधे मन से, दूसरों के देखा – देखी जप करने बैठते हैं तो मन्त्र की जगह दूसरे विचार घर कर जाते हैं । धीरे – धीरे वह मन्त्र कम होता जाता है और वे बुरे विचार ज्यादा बढ़ते चले जाते हैं । फलस्वरूप हम जिस मन्त्र जप के निमित्त बैठते हैं वह नहीं हो पाता होता है ।
यदि हम सही अर्थ में मन्त्र जाप करने बैठते हैं, उसका अभ्यास करते हैं तो धीरे धीरे वह हममें हृदय की कम्पन के साथ होने लगता है। रोम – रोम से वह प्रणव , उस मन्त्र का उच्चारण होने लगता है । तब उसका आनन्द भी हमें प्राप्त होने लगता है तथा उस स्थिरता और समाधि की ओर भी हमलोग अग्रसर होते रहते हैं । ऐसा तभी होता है जब हम केवल उसी मन्त्र का जाप कर रहे होते हैं । यदि हमारे मन में तरह – तरह के विचार उठ रहे हैं , दूसरे दृश्य नजर आ रहे हैं तो हमलोग सोच लें कि वह मन्त्र का जाप हमलोग नहीं कर रहे हैं। हमलोग अपने आप को भुलावे में रखे हैं ।
इसलिए जब हम रोग नाशक मन्त्र का जप करने बैठें तो उपरोक्त बातों का ध्यान रखें।
विश्वास के साथ नीचे बताये गए रोग के अनुसार यदि रोग नाशक मन्त्र का जाप किया जाए तो यकीन मानिए दुर्लभ से दुर्लभ रोगों में निश्चित ही लाभ मिलता है।
आइये जानते हैं किस रोग के लिए कौनसा रोग नाशक मन्त्र जाप करना चाहिए।
मानसिक बीमारियों के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ उं उमा-देवीभ्यां नमः”
इस रोग नाशक मन्त्र से मस्तक-शूल (headache) तथा मज्जा-तन्तुओं (Nerve Fibres) की समस्त विकृतियाँ दूर होती है – ‘पागल-पन’(Insanity, Frenzy, Psychosis, Derangement, Dementia, Eccentricity)तथा ‘हिस्टीरिया’ (hysteria) पर भी इसका प्रभाव पड़ता है ।
नासिका यानी नाक के रोग के लिए रोग नाशक मन्त्र:
“ॐ यं यम-घण्टाभ्यां नमः”
इस मन्त्र से ‘नासिका’ (Nose) के विकार दूर होते हैं ।
आंखों के विकार के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ शां शांखिनीभ्यां नमः”
इस मन्त्र से आँखों के विकार (Eyes disease) दूर होते हैं । सूर्योदय से पूर्व इस मन्त्र से अभिमन्त्रित रक्त-पुष्प से आँख झाड़ने से ‘फूला’ आदि विकार नष्ट होते हैं ।
कानों की बीमारी के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ द्वां द्वार-वासिनीभ्यां नमः”
इस मन्त्र से समस्त ‘कर्ण-विकार’ (Ear disease) दूर होते हैं ।
गले के विकार के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ चिं चित्र-घण्टाभ्यां नमः”
इस मन्त्र से ‘कण्ठमाला’ तथा कण्ठ-गत विकार दूर होते हैं ।
जिव्हा यानी जीभ के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ सं सर्व-मंगलाभ्यां नमः”
इस मन्त्र से जिह्वा-विकार (tongue disorder) दूर होते हैं । तुतलाकर बोलने वालों (Lisper) या हकलाने वालों (stammering) के लिए यह मन्त्र बहुत लाभदायक है ।
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रीढ़, कमर दर्द के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ धं धनुर्धारिभ्यां नमः”
इस मन्त्र से पीठ की रीढ़ (Spinal) के विकार (backache) दूर होते है । This is also useful for Tetanus.
बच्चों को नज़र लगने के ईलाज के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ मं महा-देवीभ्यां नमः”
इस मन्त्र से माताओं के स्तन विकार अच्छे होते हैं । कागज पर लिखकर बालक के गले में बाँधने से नजर, चिड़चिड़ापन आदि दोष-विकार दूर होते हैं ।
मृत्यु भय दूर करने के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ शों शोक-विनाशिनीभ्यां नमः”
इस मन्त्र से समस्त मानसिक व्याधियाँ नष्ट होती है । ‘मृत्यु-भय’ दूर होता है । पति-पत्नी का कलह-विग्रह रुकता है । इस मन्त्र को साध्य के नाम के साथ मंगलवार के दिन अनार की कलम से रक्त-चन्दन से भोज-पत्र पर लिखकर, शहद में डुबो कर रखे । मन्त्र के साथ जिसका नाम लिखा होगा, उसका क्रोध शान्त होगा ।
दिल की बीमारियों के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ लं ललिता-देवीभ्यां नमः”
इस मन्त्र से हृदय-विकार (Heart disease) दूर होते हैं।
पेट के रोगों के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ शूं शूल-वारिणीभ्यां नमः”
इस मन्त्र से ‘उदरस्थ व्याधियों’ (Abdominal) पर नियन्त्रण होता है । प्रसव-वेदना के समय भी मन्त्र को उपयोग में लिया जा सकता है ।
आंतो के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ कां काल-रात्रीभ्यां नमः”
इस मन्त्र से आँतों (Intestine) के समस्त विकार दूर होते हैं । विशेषतः ‘अक्सर’, ‘आमांश’ आदि विकार पर यह लाभकारी है ।
गैस आदि के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ वं वज्र-हस्ताभ्यां नमः”
इस मन्त्र से समस्त ‘वायु-विकार’ दूर होते हैं । ‘ब्लड-प्रेशर’ के रोगी के रोगी इसका उपयोग करें ।
दांतो के रोगों के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ कौं कौमारीभ्यां नमः”
इस मन्त्र से दन्त-विकार (Teeth disease) दूर होते हैं । बच्चों के दाँत निकलने के समय यह मन्त्र लाभकारी है।
गुप्त रोगों के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ गुं गुह्येश्वरी नमः”
इस मन्त्र से गुप्त-विकार दूर होते हैं । शौच-शुद्धि से पूर्व, बवासीर के रोगी १०८ बार इस मन्त्र का जप करें । सभी प्रकार के प्रमेह – विकार भी इस मन्त्र से अच्छे होते हैं ।
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हड्डी रोगों के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ पां पार्वतीभ्यां नमः”
इस मन्त्र से ‘रक्त-मज्जा-अस्थि-गत विकार’ दूर होते हैं । कुष्ठ-रोगी इस मन्त्र का प्रयोग करें ।
पित्त दोष हेतु रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ मुं मुकुटेश्वरीभ्यां नमः”
इस मन्त्र से पित्त-विकार दूर होते हैं । अम्ल-पित्त के रोगी इस मन्त्र का उपयोग करें ।
कफ विकार के लिए रोग नाशक मन्त्र :
“ॐ पं पद्मावतीभ्यां नमः”
इस मन्त्र से कफज व्याधियों पर नियन्त्रण होता है ।
रोग नाशक मन्त्र के विषय मे महत्वपूर्ण बात:
सर्वप्रथम यह जान लें कि रोग नाशक मन्त्र में पूर्ण श्रद्धा, अपने ईष्ट में पूर्ण विश्वास और सकारात्मक मनोस्थिति किसी भी रोग में लाभ पहुचाने के लिए पहली शर्त है।
कोई भी रोग या बीमारी के लिए रोग नाशक मन्त्र का जाप करते वक़्त जो दवा ले रहे हैं उनको न छोड़ें। या मन्त्र म दवाओं के असर को कई गुणा बढ़ाकर रोग से शीघ्र मुक्ति दिलाने में सहायक होते है। दवा और प्रार्थना का जब मिलन होता है तो परिणाम चमत्कारी ही आते हैं। ऐसा व्यवहार में देखा गया है।
रोग नाशक मन्त्र जप विधिः-
उपर्युक्त रोग नाशक मन्त्रों को सर्व-प्रथम नवरात्रि अथवा किसी अन्य पर्व-काल में १००८ बार जप कर सिद्ध कर लेना चाहिये । फिर प्रतिदिन जब तक विकार रहे, १०८ बार जप करें अथवा सुविधानुसार अधिक-से-अधिक जप करें । विकार दूर होने पर ‘कुमारी-पूजन, ब्राह्मण-भोजन आदि अवश्य कराएं।
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