आइये विस्तार से जानते हैं कि ज्योतिष में उच्च और नीच का ग्रह क्या है ।
ग्रह अस्त कब होते हैं, स्वराशी का ग्रह, आत्मकारक ग्रह क्याहोता है।ग्रहों की मूल त्रिकोण राशि कौनसी हैं। ग्रहों की अवस्था से क्या अभिप्राय होता है। उच्च और नीच के ग्रह क्या फल देते हैं।आत्मकारक ग्रहों का क्या फल होता है।
जन्म पत्रिका में कोई भी ग्रह कोई ऐसी राशि में बैठ जाता है जो उसे अत्यधिक शक्तिशाली बना दे या उसे अत्याधिक कमजोर बना ये उस स्थिति में ग्रह उच्च का या नीच का होता है। हमारे ऋषि और शास्त्रों के द्वारा हर ग्रह के लिए उसकी उच्च की और नीच की राशि कहीगयी है।उस राशि में जाकर ग्रह विशेष शक्ति को प्राप्त करता है या अपनी शक्ति को खोता है जिसे जीवन पर अधिक प्रभाव पड़ता है।
ग्रह किस राशि में उच्च का और नीच का होता है कितनी डिग्री तक ग्रह उच्च का होता है
एक राशि 30 डिग्री की होती है लेकिन उसमे भी ग्रह को एक विशेष डिग्री तक विशेष उच्च और विशेष नीच स्थिति प्राप्त होती है। यहाँ पर हम आपसे सभी ग्रह किस किस राशि में कितनी डिग्री के बीच उच्च और नीच का होता है यह बता रहे है।
(1) सूर्य की उच्च और नीच की स्थिति :-
सूर्य की अपनी राशि सिंह राशि है। लेकिन सूर्य जब भी मेष राशि में पहुंचता है तब उच्च का माना जाता है। जब की सूर्य को तुला राशि में नीच का माना जाता है। सिंह राशि उसकी मूलत्रिकोण राशि भी मानी जाती है। यानी की सूर्य कि उच्च राशि हुई मेष, सूर्य की नीच राशि तुला और सिंह राशि सूर्य की मूल त्रिकोण राशि होती है।
10 डिग्री पर सूर्य मेष में उच्च का माना जाता है|
10 डिग्री पर सूर्य तुला राशि में नीच का माना जाता है|
1 से 10 डिग्री तक सिंह राशि में मूल त्रिकोण राशि में होता है|
(2) चन्द्र की उच्च और नीच की स्थिति :-
चन्द्र को कर्क राशि का स्वामी कहा गया है| लेकिन उसकी उच्च की राशि वृषभ है। जब की उसकी नीच की राशि वृश्चिक राशि है। वृषभ राशि उसकी मूलत्रिकोण राशि भी है।
3 डिग्री पर वृषभ राशि में चन्द्र को उच्च का माना गया है।
3 डिग्री पर वृश्चिक राशि में चन्द्र को नीच का माना गया है।
4 डिग्री से लेकर 30 डिग्री तक वृषभ में वह मूलत्रिकोण राशि में है।
(3) मंगल की उच्च और नीच की स्थिति :-
मंगल के पास अपनी दो राशि है मेष राशि और वृश्चिक राशि| लेकिन वह शनि की राशि मकर में उच्च का होता है।मंगल के लिए मेष ही मूलत्रिकोण राशि है।मंगल कर्क राशि में ही नीच का होता है।
28 डिग्री पर मंगल वृश्चिक राशि में उच्च का माना जाता है।
28 डिग्री कर्क राशि में मंगल नीच का माना जाता है।
0 से 18 डिग्री में मेष राशि में मंगल मूल त्रिकोण राशि में होता है।
(4) बुध की उच्च और नीच की स्थिति :-
बुध के पास दो राशि है मिथुन और कन्या राशि जिसका वो स्वामी है। बुध कन्या राशि में उच्च का होता है। और मीन राशि में बुध नीच राशि का माना जाता है। बुध कन्या में ही मूल त्रिकोण राशिस्थ होता है।
15 डिग्री कन्या में बुध उच्च का होता है।
15 डिग्री मीन में बुध नीच का होता है।
16 से 20 के बिच बुध मूलत्रिकोण राशिस्थ होता है।
(5) गुरु की उच्च और नीच की स्थिति :-
गुरु के पार स्वयं की दो राशि है धनु और मीन। लेकिन गुरु चन्द्र की राशि कर्क में उच्च का होता है। और वह मकर जो की शनि की राशि है वहा पर नीच का होता है। धनु राशि गुरु की मूल त्रिकोण राशि भी है।
5 डिग्री पर गुरु कर्क राशि में उच्च का होता है।
5 डिग्री पर मकर राशि में गुरु नीच का होता है।
0 से 13 डिग्री पर गुरु धनु राशि में मूल त्रिकोण राशिस्थ होता है।
(6) शुक्र की उच्च और नीच की स्थिति :-
शुक्र के पास भी अपनी दो राशि है वृषभ और तुला जिसका वह स्वामी है। लेकिन वह गुरु की राशि मीन में उच्च का होता है। जब की वह बुध की राशि मीन में नीच का होता है।तुला उसकी मूल त्रिकोण राशि है।
27 डिग्री पर शुक्र मीन में उच्च का
27 डिग्री पर कन्या राशि शुक्र नीच का
0 से 10 डिग्री तक तुला राशि में शुक्र मूल त्रिकोण राशिस्थ
(7) शनि की उच्च और नीच की स्थिति :-
शनि की अपनी दो राशि है मकर और कुम्भ राशि जिसका वो स्वामी ग्रह है।शनि शुक्र की राशि तूला में उच्च का होता है। जब की वह मंगल की राशि मेष में नीच का होता है
20 डिग्री पर तुला राशि में शनि उच्च का
20 डिग्री मेष राशि पर शनि नीच का
0 से 20 डिग्री पर शनि कुम्भ राशि मूल त्रिकोण राशिस्थ
होता है।
(8-9) राहू और केतु :-
राहू की उच्च राशि वृषभ है जब की उसे कुम्भ राशि का स्वामी कहा गया है| मिथुन उसकी मूल त्रिकोण राशि है। केतु वृश्चिक राशि में उच्च का माना गया है ।वह वृषभ राशि में नीच का माना गया है। धनु राशि उसकी मूल त्रिकोण राशि है।
आत्मकारक ग्रह
”जन्म पत्रिका में जो भी ग्रह सबसे अधिक डिग्री वाला हो उसे आत्माकारक ग्रह माना जाता है । ” जन्म पत्रिका में कुल नौ ग्रह है उसमे से राहू और केतु के अलावा के जो सात ग्रह है उसमे से जिस भी ग्रह की डिग्री सबसे अधिक होती है वह उस पत्रिका के लिए आत्माकारक ग्रह माना जाता है ।
“आत्माकारक = आत्मा + कारका ” – एक ऐसा ग्रह जो जन्म पत्रिका में जातक की आत्मा को दर्शाता है; ऐसे ग्रह को आत्माकारक ग्रह कहा जाता है ।
एक उदहारण से समजते है ज्योतिष में आत्माकारक कैसे देखते है – नीचे दी गयी ग्रहों की स्थिति राहुल गांधी के जन्मपत्रिका की है जिसमे सभी ग्रह और उनकी डिग्री की स्थिति दी गयी है
Planet Degree
Sun सूर्य 4° 14′ 22.84″
Moon -चंद्रमा 2° 15′ 34.71″
Mars मंगल–17° 49′ 22.81″
Mercuryबुध 15° 36′ 34.42″
Guru (R) गुरु 2° 39′ 49.22″
Venus शुक्र 9° 40′ 48.75″
Saturn शनि 24° 28′ 48.49″
Rahu राहु 12° 53′ 14.97″
Ketu केतु 12° 53′ 14.97″
इस पत्रिका में सबसे अधिक डिग्री पर शनि ग्रह(Saturn) ग्रह है जो की 24 डिग्री और 28 मिनिट पर है। सबसे अधिक डिग्री के होने पर यह ग्रह जन्म पत्रिका के आत्माकारक ग्रह बनता है।
आत्माकारक ग्रह का ज्योतिष में महत्व:-
ज्योतिष में सात मुख्य ग्रह में से कोई भी ग्रह आत्माकारक ग्रह बन सकता है।जो की अपने साथ कुछ पूर्व जन्म के कर्म को साथ लेकर चलता है और इस जन्म में आत्मा को कौनसी इच्छाओं है उसे भी यह दर्शाता है।अलग अलग ग्रह के आत्मा करक ग्रह के बनने पर उसका विवरण अलग होता है
आत्माकारक ग्रह के माध्यम से हम अपने जीवन का वास्तविक मूल्य क्या है और जीवन का असली ध्येय क्या होना चाहिए हमें किस क्षेत्र के साथ हमारे पूर्व जन्म के कर्म जुड़े हुए है ये सभी बाते जानी जा सकती है।इसके माध्यमसे हम जीवन में मटेरियल और आध्यात्मिक विषय की क्या भूमिका हैं उसे जान सकते है।
आपकी आत्मा किस और जाना चाहती है और आपके जन्म पत्रिका के अन्य ग्रह आपको किस और ले जाना चाहते है उसे आसानी से समजा जा सकता है।
ज्योतिष में अलग अलग ग्रह के आत्मा कारक बनने पर क्या विश्लेषण किया जा सकता है उसे समझते है।
अलग अलग ग्रह की आत्माकारक ग्रह के रूप में भूमिका :-
(1) जब सूर्य जन्म पत्रिका में आत्माकारक ग्रह बनता है – तब जातक सफलता, आत्म महत्व, प्रसिद्धि, शक्तिकीकी चाहना रखता है क्योंकि उसकी आत्मा इस और इशारा करती है।अच्छे आध्यात्मिक मार्ग के लिए आपको अहंकार का त्याग करना चाहिए और, विनम्रता, सहनशीलता से व्यवहार करना चाहिए।
(2) जब चन्द्र ग्रह आत्मकारक बनता है – तब व्यक्ति को भावनाओं, खुशी, प्यार और करुणा सबसे अधिक असर करती है।ऐसे व्यक्ति को अनजान व्यक्ति को अच्छे से समजना चाहिए और किसी पर आसानी से भरोषा नहीं करना चाहिए।सच और गलत भावाना के बिच अंतर करना सिखाना होगा।
(3) मंगल ग्रह आत्मकारक बनता है – तब आक्रामकता, जुनून, विजय, और साहसिक कार्य करने की और झुकाव रहता है। स्वभाव हमेशा ही आक्रामक रहता है। इन्हें हार-जीत के चक्रव्यूह से बचाना चाहिए, धैर्य के साथ काम करना चाहिए, हिंसा से भी परहेज करना चाहिए।
(4) जब बुध ग्रह आत्मकारक बनता है और शुभ हो तब वह जातक को बौद्धिकता और, श्रेष्ठता प्रदान करता है।इन्हें जीवन में सच्चाई का सामना करना सीखना होगा।
(5) गुरु ग्रह आत्मकारक बनता है तब आत्मा का झुकाव बच्चो और आध्यात्मिकता जैसे गुरु सम्बन्धी तत्व की और रह सकता है।
(6) शुक्र ग्रह आत्मकारक बनता है तब जातक सेक्स, रिश्ते, विलासिता, कामुकता की और झुक सकता है। ऐसे जातक को कामुकता को नियंत्रित करना सिखाना होगा।
(7) शनि ग्रह आत्मकारक बनता है तब कर्तव्य, लोकतंत्र हार्ड वर्क और शुद्र की और जीवन का झुकाव रहता है। ऐसे जातक को दूसरो के दुखो को दूर करने का कार्य करना चाहिए।
ग्रहों की अवस्था और अंश
ग्रहों की अवस्था का वर्गीकरण निम्नानुसार हैं I
१. अंशो के आधार पर ग्रहों की अवस्था
वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की अवस्था पांच मानी जाती हैं:- बाल अवस्थाा, कुमार अवस्था, युवा अवस्था , बृद्ध अवस्था, मृत्यु अवस्था !! प्रत्येक राशि के 30अंश होते है।ग्रहो की बालादि अवस्थाओ का परीक्षण करने के लिए 30अंशो को 5 बराबर-बराबर 6 भागो में बाटा जाता है। ग्रहो के सम और विषम राशियों में अंशाबल की स्थिति निम्न प्रकार से परिभाषित किया है।
(A) यदि ग्रह विषम राशि में स्थित होता है तब यह :-
विषम राशि – 1, 3, 5, 7, 9 और 11 अर्थात मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु और कुंभ विषम राशि है । जो विषम राशि है उसी को पूरूष राशि भी कहते हैं और क्रूर राशि भी कहते हैं ।
* 0-6 अंश तक बाल अवस्था: २५ % तक परिणाम देता है।
* 6-12 अंश तक कुमार अवस्था: ५० % तक परिणाम देता है।
* 12-18 अंश तक युवा अवस्था: १०० % परिणाम देता है I
* 18-24 अंश तक वृद्ध अवस्था: इस अवस्था में ग्रहों के परिणाम नगण्य माने जाते हैं।
* 24-30 अंश तक मृतावस्था: इस अवस्था में ग्रह कोई परिणाम नहीं दे पाते हैं।
(B) यदि ग्रह सम राशि में स्थित होता है तब यह:
सम राशि – 2, 4, 6, 8, 10 और 12 अर्थात बृष, कर्क, कन्या, बृश्चिक, मकर और मीन सम राशि है । जो सम राशि है उसी को स्त्री राशि और सौमय राशि भी कहते हैं ।
* 0-6 अंश तक मृतावस्था: इस अवस्था में ग्रह कोई परिणाम नहीं दे पाते हैं।
* 6-12 अंश तक वृद्ध अवस्था: इस अवस्था में ग्रहों के परिणाम नगण्य माने जाते हैं।
* 12-18 अंश तक युवा अवस्था: १०० % परिणाम देता है I
* 18-24 अंश तक कुमार अवस्था: ५० % तक परिणाम देता है।
* 24-30 अंश तक बाल अवस्था: २५ % तक परिणाम देता है।
ग्रहों के उपरोक्त दिए हुए ग्रहों कीअवस्था से ये साफ़ है –
i) अच्छा ग्रह उच्च राशि में है पर बृद्ध या मृत्यु अवस्था में है तो अच्छा फल नहीं मिलेगा।
ii) बुरा ग्रह भी नीच राशि में है पर बृद्ध या मृत्यु अवस्था में तब भी बुरे प्रभाव काम देगा।
कुंडली में हर ग्रह के आगे अंश लिखा हुआ होता है। जो उस ग्रह का सामर्थ्य को दिखाता है। इस दुनिया में कोई भी चीज़ अपने सामर्थ्य के अनुसार ही फल देती है। ग्रह भी अपने सामर्थ्य के अनुसार फल देते हैं। ग्रहों का सामर्थ्य, कुंडली में वे किस राशि में कितने अंश पर हैं, निर्भर करता है।
बाल अवस्था में ग्रह की स्थिति
जन्म कुण्डली में कोई भी ग्रह यदि बाल अवस्था में स्थित है तब वह ग्रह छोटे बालक के समान निर्बल होता है I अपना फल देने में ग्रह पूर्ण रुप से सक्षम नही होता है I बाल अवस्था में स्थित ग्रह जिस भाव तथा जिस राशि मे बैठा होता है उसी के अनुसार कार्य करता है I
कुमार अवस्था में स्थित ग्रह
जन्म कुण्डली में ग्रह यदि कुमार अवस्था में किसी भी भाव या किसी भी राशि में स्थित है तब यह स्थिति बाल अवस्था से कुछ बेहतर मानी जाती है. इस अवस्था में ग्रह के भीतर कुछ फल देने की क्षमता होती है I इस अवस्था में ग्रह अपना एक तिहाई फल प्रदान करता है I
ग्रह की युवा अवस्था अत्यधिक शुभ तथा बली मानी गई है. इस अवस्था में ग्रह अपने सम्पू्र्ण फल प्रदान करता है I इसमें ग्रह एक युवा के समान बली होता है तथा दशा अनुकूल होने और कुण्डली विशेष के लिए वह ग्रह अनुकूल होने पर जातक को सारे सुख प्रदान करता है I उदाहरण के लिए कुण्डली में अगर दशमेश की दशा हो और ग्रह युवा अवस्था में स्थित हो तो जातक इस दशा मे उन्नति करता है I
वृ्द्ध अवस्था में स्थित ग्रह
इस अवस्था में स्थित ग्रह एक वृद्ध के समान निर्बल होता है I ग्रह फल देने मे सक्षम नही होता और यदि उसी ग्रह की दशा भी चल रही हो तब वह व्यक्ति के लिए शुभफलदायी नहीं रहेगी I माना किसी व्यक्ति की कुण्डली में उच्च राशि में ग्रह स्थित है लेकिन वह वृद्धा अवस्था में है तो जातक उस ग्रह की दशा में अधिक उन्नति नहीं कर पाएगा I
मृत अवस्था में स्थित ग्रह
मृत अवस्था में स्थित ग्रह अपने पूरे फल नहीं दे पाता क्योंकि ग्रह मृत व्यक्ति के समान मूक होता है I ग्रह अपनी दशा में अपने स्वरुप फल नही देता, वह जिस भाव में तथा जिस राशि में होता है उसी के अनुसार फल प्रदान करता है I यदि लग्नेश कुंडली मे बली होकर भी मृत अवस्था में स्थित हो तो वह जातक को शारीरिक सुख में कमी प्रदान कर सकता है I
3. दीप्ती के अनुसार ग्रहों की अवस्था
i) दीप्त अवस्था – उच्च राशिस्थ ग्रह दीप्त कहलाता है, जिसका फल कार्यसिध्दि है I
ii) स्वस्थ अवस्था – स्वगृही ग्रह स्वस्थ कहलाता है, जिसका फल लक्ष्मी व कीर्ति प्राप्ति है I
iii) मुदित अवस्था – मित्रक्षेत्री ग्रह मुदित कहलाता है, जो आनंद देता है I
iv) दीनअवस्था – निच्च राशिस्थ ग्रह दीन कहलाता है, जो कष्टदायक होता है I
v) सुप्त अवस्था – शत्रुक्षेत्री ग्रह सुप्त कहलाता है, जिसका फल शत्रु से भय होता है
४. सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रहों की अवस्था
(I) अस्त अवस्था:- जब कोई भी ग्रह सूर्य के निकट १२ से १ ६ अंश (आगे या पीछे)) तक आ जाता है, तो सूर्य की ऊष्मा और प्रकाश के आगे उसकी स्वयं की चमक फीकी पड़ जाती है और वह आकाश में दृष्टिगोचर नहीं होता, तो ग्रह की इस अवस्था को अस्त अवस्था कहते हैं , इस अवस्था में ग्रह अपना फल देने में असमर्थ हो जाते हैं।
जैसे – सूर्य एक राशि में १० अंश पर है और बुद्ध भी उसी राशि में १८ अंश पर है अगर दोनों के अंशों कर अंतर निकला जाय तो ये ८ अंश आता है इसका अभिप्राय ये है की बुद्ध एक अस्त ग्रह है अतः बुद्ध के परिणाम इस कुंडली में नहीं मिलेंगे।
कौन सा ग्रह सूर्य से कितने अंश समीप आने पर अस्त माना जायेगा :-
i) मंगल सूर्य से १७ अंश या इसके निकट पर अस्त होता है।
ii) बुद्ध १४ अंश समीप आने पर अस्त होता है।
iii) बृहस्पति सूर्य से ११ अंश पर अस्त माना जाता है।
iv) चन्द्रमा १२ अंश पर अस्त माना जाता है।
v) शुक्र सूर्य से १० अंश पर अस्त माना जाता है।
vi) राहु और केतु छाया ग्रह हैं, ये कभी अस्त नहीं होते।
इस प्रकार हम ग्रहों की उच्च और नीच राशि या यूँ कहे कि उच्च और नीच का ग्रह क्या होता है यह जान गये हैं। इस आधार पर कुंडली देखकर भविष्य कथन कहना ज़्यादा सही और आसान हो जाता है।
अगले लेख में हम कुंडली में ज्योतिषीय योग के बारे में जानेगे।