शुक्र की महादशा में सभी ग्रहों की अन्तर्दशा का फल
शुक्र महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा का फल
शुक्र की महादशा में शुक्र की हा अंतर्दशा तीन वर्ष चार महीने की होती है।
यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं शुक्र भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो शुक्र की महादशा में शुक्र की ही अंतर्दशा हो तो जातक को अपना शुभ फल प्रदान करता है। जातक सामान्य श्रम करके ही भरपूर लाभ प्राप्त कर लेता है। उच्च शिक्षा अथवा शोध कार्य के लिए जातक विदेशवास करता है। प्रेम-प्रसंग में जातक को सफलता भी मिलती है। जातक का स्वयं के रख-रखाव पर अधिक दन व्यय होता है।
यदि शुक्र अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं शुक्र नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो शुक्र की महादशा व शुक्र की अंतर्दशा में जातक को आर्थिक हानि होती है। अस्थिर व आर्ष्यालु चित्त के कारण लोक समाज में जातक की निंदा होती है। धनहानि, गृहकलह, धातुक्षीणता, बल तथा ओज का क्षय होता है।
शुक्र महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा का फल
शुक्र महादशा में सूर्य की अंतर्दशा एक वर्ष की होती है।
यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं शुक्र भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो शुक्र की महादशा में सूर्य की ही अंतर्दशा हो तो जातक को मिश्रित फल प्राप्त होता है। जातक को कार्य व्यवसाय में लाभ, उच्चवर्गीय लोगों से मेल-जोल तथा पैतृक सम्पत्ति से लाभ मिलता है।
यदि शुक्र अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं सूर्य नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो शुक्र की महादशा व सूर्य की अंतर्दशा में जातक की माता पिता से कलह होती है एवं भाइयों से कष्ट मिलता है। शय्या सुख में कमी आ जाती है व्यर्थ में लोगों से शत्रुता बनती है। अनेक समस्याये एवं बाधाएं उपस्थित होती है, जिनका निराकरण करते-करते जातक थक जाता है।
शुक्र महादशा में चंद्रमा की अन्तर्दशा का फल
शुक्र की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा एक वर्ष आठ महीने की होती है।
यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं शुक्र भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो शुक्र की महादशा में चंद्रमा की ही अंतर्दशा हो तो जातक को शुभ फल देता है। व्यापार-व्यवसाय में विशेषतः श्वेत वस्तुओं और श्रृंगार की वस्तुओं के व्यापार से जातक को लाभ मिलता है। जातक में काम वासना प्रबल होती है और अनेक रमणियों से रमण के अवसर मिलते हैं। कला की ओर विशेष रूझान होता है तथा जातक कला, कविता, काव्य आदि के क्षेत्र में ख्याति अर्जित कर धन-मान सम्मान पा लेता है।
यदि शुक्र अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं चंद्रमा नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो शुक्र की महादशा व चंद्रमा की अंतर्दशा में जातक को कामकुण्ठायें त्रस्त करती है। मोह, लोभ, और ईष्या के कारण जातक की निन्दा होती है।
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शुक्र महादशा में मंगल की अन्तर्दशा का फल
शुक्र की महादशा में मंगल की अंतरर्दशा एक वर्ष दो महीने की होती है।
यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहो द्वारा युत व दृष्ट हो तो एवं शुक्र भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो शुक्र की महादशा में मंगल की अतर्दशा हो तो जातक भूमि, वस्त्राभूषण एवं इष्टसिद्धि प्राप्त कर लेता है। साहसिक एवं पराक्रमयुक्त कार्यो में विशेष रूचि लेकर जातक राजकीय मान सम्मान प्राप्त करता है। अन्य वासनामय विचार जातक को कुण्ठाग्रस्त करते हैं।
यदि शुक्र अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं मंगल नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो शुक्र की महादशा व मंगल की अंतर्दशा में जातक में कामवासना इतनी उग्र हो उठती है कि वह बलात्कार तक कर बैठता है। जातक की लोकनिंदा होती है। सामाजिक दण्ड भी जातक को मिलता है। लड़ाई-झगड़ों में जातक की पराजय होती है।
शुक्र महादशा में राहु की अन्तर्दशा का फल
शुक्र की महादशा में राहु की अन्तर्दशा तीन वर्ष की होती है।
यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं शुक्र भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो शुक्र की महादशा में राहु की अंतर्दशा हो तो जातक के मन में अस्थिरता बन जाती है। आकस्मिक रूप से जातक को धन लाभ होता है। जातक के घर में मांगलिक कार्य होते हैं। जातक के उत्साह में वृद्धि होती है एवं वह प्रसन्नचित्त रहता हैं। दशा का अंत सामान्य रहता है।
यदि शुक्र अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं राहु नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो शुक्र की महादशा व राहु की अंतर्दशा में जातक धर्म एवं कर्म विहीन हो जाता है। इष्ट-मित्रों एवं परिजनो से जातक का व्यर्थ में विवाद होता है। जातक के कार्यो में रूकावट, स्थानांतरण व हानि होती है। जातक के मन में उद्वेग, ईर्ष्या व द्वेष होता है।
शुक्र महादशा में गुरू की अन्तर्दशा का फल
शुक्र की महादशा में गुरू की अतर्दशा दो वर्ष आठ महीने की होती है।
यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो एवं उच्च मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो शुक्र की महादशा में गुरू की अंतर्दशा हो तो जातक को शुभ फल प्राप्त होते हैं। जातक दिखावे के लिए धर्म, कर्म व दान पुण्य करता है। जातक छिपकर प्रेमालाप करता है।
यदि शुक्र अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं गुरू नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो शुक्र की महादशा व गुरू की अंतर्दशा में जातक जेसे तेसे विद्या पूर्ण करता है किंतु उसे उसकी विद्या से लाभ प्राप्त नही हो पाता। जातक हमेशा भ्रमित रहता है तथा योग व भोग दोनों के प्रति रूचिवान रहता है।
शुक्र महादशा में शनि की अन्तर्दशा का फल
शुक्र की महादशा में शनि की अंतर्दशा तीन वर्ष दो महीने की होती है।
यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं शुक्र भी शुभ ग्रहों के प्रभाव मे हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो शुक्र की महादशा में शनि की अंतर्दशा हो तो यह जातक को प्रायः सामान्य फल ही प्रदान करती है। जातक को निम्न वर्ग के लगों से स्त्रियों से लाभ प्राप्त होता है। जातक आलसी हो जाता है एवं प्रत्येक कार्य को विलंब से करता है ।
यदि शुक्र अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं शनि नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं शनि नीच राशि की अंतर्दशा में जातक को स्त्रीसुख की हानि, संतान को कष्ट एवं कार्य-व्यवसाय का नाश हो जाता है। सुख का अभाव व सुख प्राप्ति की प्रबल इच्छा जातक को सबसे ज्यादा दुखी करती है। जातक हमेशा दुखी रखता है।
शुक्र महादशा में बुध की अंतर्दशा का फल
शुक्र की महादशा में बुध की अंतर्दशा दो वर्ष दस महीने की होती है।
यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं शुक्र भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो शुक्र की महादशा में बुध की अंतर्दशा हो तो जातक को पूर्व में मिले कष्टों से सुख मिलता है। व्यापार वा व्यवसाय में जातक को उत्तम लाभ मिलता है। नौकरी करने वालों को उच्चाधिकारियों से पद और वेतन वृद्धि प्राप्त होती है। जातक को राजकीय सम्मान मिलता है। जातक धर्म कर्म के कार्यों में भाग लेता है तथा परिजनों का स्नेहभाजन बना रहता है।
यदि शुक्र अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं बुध नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों स युक्त दृष्ट हो तो शुक्र की महादशा व बुध की अंतर्दशा में जातक परस्त्री संग को लालायित रहता है। जातक की अपकीर्ति होती है। जातक को व्यापार में हानि प्राप्त होती है। जातक की पुत्री के विवाह में विघ्न आते हैं। अथवा सम्बंध-विच्छेद हो जाते हैं।
शुक्र महादशा में केतु की अन्तर्दशा का फल
शुक्र की महादशा में केतु की अंतर्दशा एक वर्ष दो महीने की होती है।
यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युक्त व दृष्ट हो एवं शुक्र भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो शुक्र की महादशा मे केतु की अंतर्दशा हो तो जातक को शुभ समाचार मिलते हैं। उत्तम वस्त्राभूषण, वाहन एवं आवास की प्राप्ति से जातक प्रसन्नचित रहता है। सट्टा, रेस, लाटरी आदि से यदा कदा लाभ के अवसर बनते हैं।
यदि शुक्र अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं केतु नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो शुक्र महादशा व केतु की अंतर्दशा में जातक नीच कर्म में रत रहता है। जातक की बुद्धि में अस्थिरता आ जाती है। अष्ट-मित्रों से झगड़े होते हैं, मुकदमों में पराजय एवं किसी के निधन से मानसिक संताप होता है।